न चमन न वतन चाहिए मुझे तो बस तिरंगे का कफन चाहिए न चमन न वतन चाहिए मुझे तो बस तिरंगे का कफन चाहिए
भीग रहा हूं उसी बरसात में। भीग रहा हूं उसी बरसात में।
सब तरफ से ईंटें उठती रही हम थे कि अनजान ही बने रहे। सब तरफ से ईंटें उठती रही हम थे कि अनजान ही बने रहे।
गुलदस्ते सा मेरा देश गुँथे जिसमे विविध हैं वेश गुलदस्ते सा मेरा देश गुँथे जिसमे विविध हैं वेश
ग़ज़ल ग़ज़ल
कितने फुर्क़त के सदमें उठाने पडे,गम से दो चार हुए अश्क-ए-तर में रहे। कितने फुर्क़त के सदमें उठाने पडे,गम से दो चार हुए अश्क-ए-तर में रहे।